Department of Hindi (44)

संपादन
 
 
 
 
संपादन का अर्थ है किसी लेख, पुस्तक, दैनिक, साप्ताहिक मासिक या सावधिक पत्र या कविता के पाठ, भाषा, भाव या क्रम को व्यवस्थित करके तथा आवश्यकतानुसार उसमें संशोधन, परिवर्तन या परिवर्धन करके उसे सार्वजनिक प्रयोग अथवा प्रकाशन के योग्य बना देना। लेख और पुस्तक के संपादन में भाषा, भाव तथा क्रम के साथ साथ उसमें आए हुए तथ्य एवं पाठ का भी संशोधन और परिष्कार किया जाता है। इस परिष्करण की क्रिया में उचित शीर्षक या उपशीर्षक, देकर, अध्याय का क्रम ठीक करके, व्याकरण की दृष्टि से भाषा सुधार कर, शैली और प्रभाव का सामंजस्य स्थापित करके, नाम, घटना, तिथि और प्रसंग का उचित योग देकर, आवश्यकतानुसार विषय, शब्द, वाक्य या उदाहरण बढ़ाकर, उद्धरण जोड़कर, नीचे पादटिप्पणी देकर सुबोध व्याख्या भी जोड़ दी जा सकती है।
 
सामयिक घटना या विषय पर अग्रलेख तथा संपादकीय लिखना, विभिन्न प्रकार के समाचारों पर उनकी तुलनात्मक महत्ता के अनुसार उनपर विभिन्न आकार प्रकार के शीर्षक (हेडलाइन, फ़्लैश, बैनर) देना, अश्लील, अपमानजनक तथा आपत्तिजनक बातें न लिखते हुए सत्यता, ओज, स्पष्टवादिता, निर्भीकता तथा निष्पक्षता के साथ अन्याय का विरोध करना, जनता की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करना, जनता का पथप्रदर्शन करना और लोकमत निर्माण करना दैनिक पत्र के संपादन के अंतर्गत आता है। साप्ताहिक पत्रों में अन्य सब बातें तो दैनिक पत्र जैसी ही होती हैं किंतु उसमें विचारपूर्ण निबंध, कहानियाँ, विवरण, विवेचन आदि सूचनात्मक, पठनीय और मननीय सामग्री भी रहती है। अत: उसके लेखों, साप्ताहिक समाचारों, अन्य मनोरंजक सामग्रियों तथा बालक, महिला आदि विशेष वर्गो के लिए संकलित सामग्री भी रहती है। अत: उसके लेखों, साप्ताहिक समाचारों, अन्य मनोरंजक सामग्रियों तथा बालक, महिला आदि विशेष वर्गों के लिए संकलित सामग्री का चुनाव और संपादन उन विशेष वर्गों की योग्यता और अवस्था का ध्यान रखते हुए लोकशील की दृष्टि से करना पड़ता है। इसी प्रकार वाचकों द्वारा प्रेषित प्रश्नों के उत्तर भी लोकशील तथा तथ्य की दृष्टि से परीक्षित करके समाविष्ट करना आवश्यक होता है।
 
मासिक या सावधिक पत्र मुख्यत: विचारपत्र होते हैं जिनमें गंभीर तथा शोधपूर्ण लेखों की अधिकता होती है। इनमें आए लेखों का संपादन लेख या पुस्तक के समान होता है। विवादग्रस्त विषयों पर विभिन्न पक्षों से प्राप्त लेखों का इस प्रकार परीक्षण कर लिया जाता है कि उनमें न तो किसी भी प्रकार किसी व्यक्ति, समुदाय, समाज अथवा ग्रंथ पर किसी प्रकार का व्यंग्यात्मक का आक्रोशपूर्ण आक्षेप हो और न कहीं अपशब्दों या अश्लील (अमंगल, ब्रीडाजनक तथा ग्राम्य) शब्दों का प्रयोग हो। ऐसे पत्रों में विभिन्न शैलियों में आकर्षक रचनाकौशलों के साथ लिखे हुए पठनीय, मननीय, मनोरंजक, ज्ञानविस्तारक, विचारोत्तेजक और प्रेरणाशील लेखों का संग्रह करना, उसके साथ आवश्यक संपादकीय टिप्पणी देना, स्पष्टीकरण के लिए पादटिप्पणी, परिचय अथवा व्याख्या आदि जोड़ना और आए हुए लेखों को बोधगम्य तथा स्पष्ट करने के लिए अनावश्यक अंश निकाल देना, आवश्यक अंश जोड़ना, आदि से अंत तक शैली के निर्वाह के लिए भाषा ठीक करना, जिस विशेष कौशल से लेखक ने लिखा हो उस कौशल की प्रकृति के अनुसार भाषा और शैली को व्यवस्थित करना, यदि लेखक ने उचित कौशल का प्रयोग न किया हो तो उचित कौशल के अनुसार लेख को बदल देना, भाषा में प्रयुक्त किए हुए शब्दों और वाक्यों का रूप शुद्ध करना या लेख का प्रभाव बनाए रखने अथवा उसे अधिक प्रभावशील बनाने के लिए शब्दों और वाक्यों का संयोजन करना आदि क्रियाएँ संपादन के अंतर्गत आती हैं।
 
कविता या काव्य के संपादन में छंद, यति, गति, प्रभाव, मात्रा, शब्दों के उचित योजना, अलंकारों का उचित और प्रभावकारी योग, भाव के अनुसार शब्दों का संयोजन, प्रभाव तथा शैली का निर्वाह, तथा रूढ़ोक्तियों के उचित प्रयोग आदि बातों का विशेष ध्यान रखा जाता है। तात्पर्य यह है कि संपादन के द्वारा किसी भी लेख, पुस्तक या पत्र की सामग्री को उचित अनुपात, रूप, शैली और भाषा में इस प्रकार ढाल दिया जाता है कि वह जिस प्रकार के पाठकों के लिए उद्दिष्ट हो उन्हें वह प्रभावित कर सके, उनकी समझ में आ सके और उनके भावों, विचारों तथा भाषाबोध को परिमार्जित, सशक्त, प्रेरित और प्रबुद्ध कर सके तथा लेखकों का भी पथप्रदर्शन कर सके।
 
 
 
 
 

 

 
सम्प्रेषण
 
सम्प्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच मौखिक, लिखित, सांकेतिक या प्रतिकात्मक माध्यम से विचार एवं सूचनाओं के प्रेषण की प्रक्रिया है। सम्प्रेषण हेतु सन्देश का होना आवश्यक है। सम्प्रेषण में पहला पक्ष प्रेषक (सन्देश भेजने वाला) तथा दूसरा पक्ष प्रेषणी (सन्देश प्राप्तकर्ता) होता है। सम्प्रेषण उसी समय पूर्ण होता है जब सन्देश मिल जाता है और उसकी स्वीकृति या प्रत्युत्तर दिया जाता है।
 
सम्प्रेषण के प्रकार
सम्प्रेषण मौखिक, लिखित या गैर शाब्दिक हो सकता है।
 
1 मौखिक सम्प्रेषण-
जब कोई संदेश मौखिक अर्थात मुख से बोलकर भेजा जाता है तो उसे मौखिक सम्प्रेषण कहते हैं। यह भाषण, मीटिंग, सामुहिक परिचर्चा, सम्मेलन, टेलीफोन पर बातचीत, रेडियो द्वारा संदेश भेजना आदि हो सकते हैं। यह सम्प्रेषण का प्रभावी एवं सस्ता तरीका है। यह आन्तरिक एवं बाह्य दोनों प्रकार के सम्प्रेषण के लिए सामान्य रूप से प्रयोग किया जाता है। मौखिक सम्प्रेषण की सबसे बड़ी कमी है कि इसे प्रमाणित नहीं किया जा सकता क्योंकि इसका कोई प्रमाण नहीं होता।
2 लिखित सम्प्रेषण-
जब संदेश को लिखे गये शब्दों में भेजा जाता है, जैसे पत्र, टेलीग्राम, मेमो, सकर्लूर, नाेिटस, रिपोटर् आदि, ताे इसे लिखित सम्प्रेषण कहते है। इसकी आवश्यकता पड़ने पर पुष्टि की जा सकती है। सामान्यत: लिखित संदेश भेजते समय व्यक्ति संदेश के सम्बन्ध में सावधान रहता है। यह औपचारिक होता है। इसमें अपनापन नहीं होता तथा गोपनीयता को बनाए रखना भी कठिन होता है।
3 गैर-शाब्दिक सम्प्रेषण-
ऐसा सम्प्रेषण जिसमें शब्दों का प्रयोग नहीं होता है गैर शाब्दिक सम्प्रेषण कहलाता है। जब आप कोई तस्वीर, ग्राफ, प्रतीक, आकृति इत्यादि देखते हैं। आपको उनमें प्रदर्शित संदेश प्राप्त हो जाता है। यह सभी दृश्य सम्प्रेषण हैं। घन्टी, सीटी, बज़र, बिगुल ऐसे ही उपकरण हैं जिनके माध्यम से हम अपना संदेश भेज सकते हैं। इस प्रकार की आवाजें ‘श्रुति’ कहलाती है। इसी प्रकार से शारीरिक मुद्राओं जिसमें शरीर के विभिन्न अंगों का उपयोग किया गया हो, उनके द्वारा भी हम संप्रेषण करते हैं। उन्है। हम संकेतों द्वारा संप्रेषण कहते हैं। हम अपने राष्ट्रीय ध्वज को सलाम करते हैं। हाथ मिलाना, सिर को हिलाना, चेहरे पर क्रोध के भाव लाना, राष्ट्र गान के समय सावधान की अवस्था में रहना आदि यह सभी संकेत के माध्यम से सम्प्रेषण के उदाहरण हैं। जब अध्यापक विद्यार्थी की पीठ पर थपकी देता है तो इसे उसके कार्य की सराहना माना जाता है तथा इससे विद्यार्थी और अच्छा कार्य करने के लिए प्रेरित होता है।
 
 
 
 
 
 
 
हिन्दी की पारिभाषिक शब्दावली
 
 प्रयोजनमूलक हिन्दी का महत्वपूर्ण अंग है। इस शब्दावली ने हिन्दी को ज्ञान, विज्ञान प्रषासन, वाणिज्य और जनसंसार की भाषा बनने का गौरव प्रदान किया है। साहित्यिक भाषा से राजभाषा बनने की यह यात्रा अनेक सोपान पार कर यहाँ तक पहुँची है। पारिभाषिक शब्दों का निर्माण, निर्माण के आधार, शब्दावली का महत्व इस प्रक्रिया द्वारा समझा जा सकता है। यह शब्दावली हिन्दी की सम्मान वृद्धि में सहायक सिद्ध हुई है। यह हमारी गौरवशाली उपलब्धि है।
 
हिन्दी भाषा का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। ग्रामीण हों या शहरी, पढे लिखे हों या अनपढ़, व्यवसायी, अध्यापक, डॉक्टर या वकील हों, हिन्दी भाषा के बिना किसी का काम नहीं चलता है। यह भाषा इस देश की धडकन है। सामान्य व्यवहारों की भाषा से साहित्यिक भाषा तक हिन्दी ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। सन् 1950 में हिन्दी को राजभाषा का स्थान प्राप्त हुआ। हिन्दी अब सरकारी कामकाज की भाषा बन गई। स्वतंत्रता से पूर्व शासकीय कार्य अंग्रेजी भाषा में सम्पन्न किए जाते थे। अंग्रेजी से पूर्व राजभाषा फारसी थी। ‘‘ जैसे-जैसे राजतंत्री परम्पराएँ बिखरती गई अनेक देशों में जनतांत्रिक व्यवस्थाएँ उभरकर सामने आई तो उन्होंने अपने-अपने यहाँ बोली तथा समझी जाने वाली प्रमुख जनभाषा को राजभाषा को पद प्रदान किया।1 इसी क्रम में स्वाधीन भारत के संविधान के अनुसार केन्द्र सरकार के कामकाज के लिए देवनागरी में लिखित हिन्दी को 26 जनवरी 1950 को भारत की राजभाषा घोषित किया गया।
 
राजभाषा का उत्तरदायित्त्व ग्रहण करते ही हिन्दी भाषा साहित्य से इतर, न्याय, विज्ञान, वाणिज्य, प्रशासन, जनसंचार, विज्ञापन, अनुवाद एवं रोजगार की भाषा बन गई। कार्यालयीन, कामकाजी और व्यावहारिक भाषा के रूप में हिन्दी की नयी पहचान बनी। इसे हिन्दी का प्रयोजनीय पक्ष कहा गया। तब से आज तक हिन्दी की प्रयोजनीयता पर कार्य हो रहे हैं। अथक प्रयासों से हिन्दी अपने सभी पक्षों, सभी क्षेत्रों में सफल हो रही है। सबसे पहले तो उसे ऐसी शब्दावली विकसित करनी पडी जो न्याय, जनसंचार, पत्रकारिता, मीडिया, विज्ञान और विज्ञापन की आवश्यकता को पूर्ण कर सके। यही शब्दावली पारिभाषिक शब्दावली कही जाती है।
 
पारिभाषिक शब्दावली : आशय
 
 
शब्द से आशय वर्गों के सार्थक समूह से है। ‘‘मनुष्य जगत के व्यवहार, चिन्तन-मनन और भावन की सभी स्थूल-सूक्ष्म अभिव्यक्तियाँ शब्द के अर्थाभाव से चरितार्थ होती है। तत्त्वत : शब्द और अर्थ अभिन्न है। इसलिए महाकवि तुलसीदास कहते हैं- गिरा अरथ जल बीच सम कहियत भिन्न न भिन्न।’ परम्परा, परिस्थिति और प्रयोग से शब्द और उनका अर्थ जीवित रहता है। शास्त्र, विशिष्ट विषय अथवा सिद्धान्त के सम्प्रेषण के लिए सामान्य शब्दों के स्थान पर विषिष्ट शब्दावली की आवश्यकता होती है। यही शब्दावली पारिभाषिक शब्दावली कहलाती है। कुछ विद्वान इसे तकनीकी शब्दावली कहते हैं।
 
डॉ. माधव सोनटक्के इसे ‘ज्ञान विज्ञान की असीम परिधि को व्यक्त करने वाली शब्दावली’ कहते हैं वहीं डॉ. सत्यव्रत दैनिक जीवन में नए विचार और वस्तुओं के लिए नए शब्दों के आगमन को पारिभाषिक शब्द मानते हैं। पारिभाषिक शब्द का अर्थ है- जिसकी परिभाषा दी जा सके। परिभाषा किसी विषय, वस्तु या विचार को एक निश्चित स्वरूप में बाँधती है। सामान्य शब्द दैनिक व्यवहार में, बोलचाल में प्रयुक्त होते है। जैसे दाल, चावल, कमरा, घर, यात्रा, नदी पहाड़ आदि। पारिभाषिक शब्द विषय विषेष में प्रयुक्त होते हैं। जैसे- खाता, लेखाकर्म, वाणिज्य, प्रबन्ध, लिपिक, वेतन, सचिव, गोपनीय आदि। ये शब्द वाणिज्य और प्रशासन के पारिभाषिक शब्द हैं। प्रशासन शब्दकोश में लिखा है- ‘‘पारिभाषिक शब्द का एक सुनिश्चित और स्पष्ट अर्थ होता है। किसी विषेष संकल्पना या वस्तु के लिए एक ही शब्द होता है, विषय विषेष या संदर्भ में उससे हटकर उसका कोई भिन्न अर्थ नहीं होता।’’
 
डॉ. भोलानाथ तिवारी ने लिखा है-‘‘ पारिभाषिक शब्द ऐसे शब्दों को कहते हैं जो रसायन, भौतिक, दर्शन, राजनीति आदि विभिन्न विज्ञानों या शास्त्रों के शब्द होते हैं तथा जो अपने अपने क्षेत्र में विशिष्ट अर्थ में सुनिश्चित रूप से परिभाषित होते हैं। अर्थ और प्रयोग की दृष्टि से निश्चित रूप से पारिभाषित होने के कारण ही ये शब्द पारिभाषिक कहे जाते है।’’ कमलकुमार बोस ने पारिभाषिक शब्द को इस प्रकार समझाया है-‘‘ पारिभाषिक शब्द से तात्पर्य उन सारी शब्दाभिव्यक्तियों से है जो नव्य शास्त्र, प्रशासन, विज्ञान और व्यवहार में विशिष्ट अर्थ के लिए प्रयुक्त होती है।’’ इस प्रकार विषय विशेष में प्रयुक्त होने वाला विशिष्ट शब्द पारिभाषिक शब्द कहलाता है।
 
 
 
 
 
निविदा सम्बन्धी पत्र
निविदा का शाब्दिक अर्थ है, आवश्यक रकम लेकर वांछित वस्तुएँ जुटा देने या काम पूरा करने का लिखित वादा देना। निविदा को अंग्रेजी में Tender (टेण्डर) कहते हैं।
 
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि किसी निर्माण कार्य, जैसे- कार्यालय भवन, निम्न आय वर्ग के लिए क्वार्टर, मध्यम आय वर्ग या उच्च आय वर्ग के लिए फ्लैट, किसी सड़क, ट्रॉली, डिब्बे आदि के निर्माण के लिए मोहरबन्द निर्धारित प्रपत्र पर जो आवेदन आमन्त्रित किए जाते हैं, वही 'निविदा' कहलाती है।
 
निविदा सम्बन्धी पत्रों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-
 
(1) संसद निर्माण वैद्युत मण्डल की ओर से डीलरों को आवेदन के साथ डीलरशिप सर्टिफिकेट जमा करने हेतु निविदा आमन्त्रण सूचना लिखिए।
 
................................दिनांक 22 मार्च, 20XX
 
निविदा आमन्त्रण सूचना
 
भारत के राष्ट्रपति की ओर से कार्यपालक अभियन्ता (वै.) संसद निर्माण वैद्युत मण्डल-2, के. लो. नि. वि., विद्युत भवन, शंकर मार्केट, नई दिल्ली-01 द्वारा फिलिप्स/हैलोनिक्स/विप्रो/क्रॉंम्प्टन/सूर्या/बजाज/वेंचर/जीई/मेक सीएफएल लैम्प, एमएच लैम्प, एमएच/एचपीएसवी चोक एवं पीएलएल ट्यूब के निर्माताओं अथवा उनके अधिकृत डीलरों से मुहरबन्द लिफाफों में निविदाएँ आमन्त्रित की जाती हैं। अधिकृत डीलरों को आवेदन के साथ अपना प्राधिकार पत्र/डीलरशिप सर्टिफिकेट आदि जमा कराना होगा। अन्यथा उनके आवेदन तत्काल निरस्त कर दिए जाएँगे।
 
कार्य का नाम कार्य का नाम : स्टॉक (सबहैड:सीएफएल लैम्प, एमएच लैम्प, एमएच/एचपी एसवी चोक तथा पीएल ट्यूब की आपूर्ति)
अनुमानित लागत 17,64, 703
धरोहर राशि 35, 294
नियम व शर्ते सहित निविदा प्रपत्रों की कीमत 500
नियमों व शर्तो सहित निविदा प्रपत्रों के निर्गमन हेतु आवेदन प्राप्ति की अन्तिम तिथि 28.03.20XX, अपराह 3 : 00 बजे तक
नियमों व शर्ते सहित निविदा प्रपत्रों के निर्गमन की तिथिि 28.03.20XX, अपराह 4 : 00 बजे तक
निविदा प्राप्ति की तिथि 29.03.20XX, अपराह 3 : 00 बजे तक
परिपूर्णन अवधि एक माह
(2) एयर फोर्स स्टेशन, दादरी में यू.जी. केबल बिछाने हेतु निविदा सूचना लिखिए।
 
एयर फोर्स स्टेशन, दादरी
गौतम बुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश।
................................. दिनांक 23 मार्च, 20XX
 
निविदा सूचना
 
कार्य का नाम : एयरफोर्स स्टेशन दादरी में 6.0 किमी यू.जी. केबल तथा 3.5 किमी ओ. एफ.सी. की आपूर्ति करना, बिछाना, परीक्षक एवं प्रचालन आरम्भ करना।
परियोजना की लागत : 31,44, 107
धरोहर राशि : 1, 00,000 निविदा शुल्क : 100 परिपूर्ण अवधि : आपूर्ति आदेश प्रदान किए जाने की तिथि से 12 से 16 सप्ताह
निविदा दस्तावेजों की बिक्री की तिथि : 21.3.XX से 14.4. 20XX, 14:00 तक (सभी कार्य दिवसों में)
निविदा प्राप्ति की तिथि एवं समय : 14.4.20XX, 14:00 बजे तक (सभी कार्य दिवसों में)
तकनीकी निविदा खोले जाने की तिथि : 15.4.20XX (11:00 बजे)
वित्तीय निविदा खोले जाने की तिथि : निविदाओं के तकनीकी मूल्यांकन को अन्तिम रूप दिए जाने के बाद सूचित की जाएगी।
निविदा दस्तावेजों की बिक्री का स्थान : कार्यालय : सीपीई, पी.एम.जी., एएफ, स्टेशन दादरी, सोधोपुर की झील, जिला; गौतमबुद्ध नगर, उ.प्र.203208
 
2. आरएफसी (प्रस्ताव हेतु अनुरोध) का विस्तृत विवरण तथा डी.सी.ए. (ड्राफ्ट कॉन्ट्रेक्ट एग्रीमेन्ट) इण्डियन एयरफोर्स की वेबसाइट www.indian airforce.nic.in से डाउनलोड किए जा सकते हैं। यह स्टेशन निर्धारित तिथि एवं समय के भीतर निविदा के नियमों व शर्तों सहित निविदा/कोटेशन प्रपत्रों का प्राप्ति/जमा कराने में होने वाली किसी देरी के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।
 
......................................हस्ताक्षर.....
 
 
 
 
 
टिप्पण लेखन 
 
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ज्ञापन किसे कहते हैं? 
 
ज्ञापन का अर्थ होता है ज्ञान कराना, या किसी तथ्य को ज्ञात कराने वाला पत्र, अतः इसे स्मृति पत्र भी कहते हैं। 
 
 दो या दो से अधिक पक्षों के बीच हुए ज्ञापन में एक साझा कार्यक्रम की रूपरेखा के साथ साथ-साथ काम करने के निश्चय की बात लिखी गयी होती है। यह एक विधिक पत्र है।
 
ज्ञापन दो प्रकार का होता है :-
1.सरकारी ज्ञापन, 
2. सामान्य ज्ञापन।
 
1 कार्यालय ज्ञापन (Memorandum)
 
कार्यालय ज्ञापन अधीन कार्यालयों या कर्मचारियों से संबंधित विशिष्ट कार्यालयी पत्र होता है। इसका प्रेषक सरकारी अधिकारी होता है।
 
ज्ञापन एक दस्तावेज़ है जो संगठन के प्रमुख (यह या उच्चतर) या संरचनात्मक इकाई के प्रमुख को संबोधित किया गया है। ज्ञापन संकलक के निष्कर्षों और प्रस्तावों के साथ किसी भी मुद्दे को बताता है और लक्ष्य को एक निश्चित निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित करना है। यदि रिपोर्ट कार्य की प्रगति के बारे में addressee सूचित करते हैं, तो वे नियमित रूप से संकलित किया जा सकता है।
संगठन के प्रमुख को संबोधित रिपोर्ट आंतरिक दस्तावेज हैं और उन्हें ए 4 पेपर की एक साधारण शीट पर तैयार किया जा सकता है। उच्च अधिकारियों को भेजे गए कागजात बाहरी दस्तावेज हैं, उन्हें संगठन के लेटरहेड पर तैयार किया जाना चाहिए।
   ज्ञापन के पाठ में दो या तीन अर्थपूर्ण भाग होते हैं। पहला भाग - बताते हुए - कारणों, तथ्यों और घटनाओं की रूपरेखा बताते हैं जो इसके लेखन को जन्म देते हैं। दूसरा भाग - विश्लेषण - वर्तमान स्थिति का विश्लेषण, इसके संभावित समाधान। तीसरा हिस्सा - संक्षेप में - ठोस कार्यों के निष्कर्ष और सुझाव शामिल हैं, जो संकलक की राय में लिया जाना चाहिए। ज्ञापन में दूसरा भाग नहीं हो सकता है, तो दस्तावेज़ में केवल नोट के लेखक की स्थिति, निष्कर्ष और सुझावों का विवरण शामिल है।
प्रशासनिक पत्राचार
 
सरकारी पत्राचार या कार्यालयी पत्राचार से तात्पर्य ऐसे पत्रों से है जो किसी मंत्रालय, कार्यालय, संस्था तथा कार्यरत कर्मचारी के बीच प्रशासनिक या कार्यालयी प्रयोजनों के लिए किया जाता है, कभी किसी संस्था से सूचना मँगानी होती है तो कभी किसी संस्था को सूचना भेजनी होती है।
केंद्रीय या प्रांतीय सरकारें कार्य-संचालन की सुविधा के लिए अनेक कार्यालयों की व्यवस्था करती हैं। ये कार्यालय देश के एक कोने से दूसरे कोने तक फैले रहते हैं। उनका सम्बन्ध पत्रों द्दारा स्थापित होता है। सरकारी कार्यालयों में सबसे अधिक प्रयोग पत्राचार से ही होता है। पत्र सरकारी कार्यालयों में उनकी कार्य-पध्दति एवं सम्प्रेषण की रीढ़ की हड्डी होती है। "जब एक सरकार दूसरी राज्य सरकार को अर्थात भारत सरकार राज्य सरकार को, एक राज्य सरकार दूसरी राज्य सरकार को, अपने से सम्बन्ध या अपने अधीनस्थ कार्यालयों एवं विभागों, सरकारी संगठनों, संस्थाओं, बैंकों, कर्मचारी संघों, तथा सामान्य जनता विभिन्न विषयों पर पत्र लिखती अथवा उत्तर देती हैं तब उन्हें सरकारी या प्रशासकीय पत्र कहते है। सरकार द्दारा विदेशी सरकारों, उनके राजदूतावासों, स्वदेश स्थित कार्यालयों तथा अन्तर्राष्टीय संगठनों को लेखे गये पत्र भी इसी वर्ग में आते है। पत्र के कच्चे रूप को आलेखन या मसौदा तैयार करना कहा जाता है। जिसे कार्यालयीन सहायक एवं वरिष्ठ लिपिक तैयार करते है। प्रारूप को फिर से पढ़कर अपने उच्च अधिकारी के पास अनुमोदन के लिए भेजा जाता है। अधिकारी संशोधित कर टंकित या साइक्लोस्टाइल कर कार्यालय को प्रेषित करते है। तद्नुसार पत्राचार के अलग-अलग रूप निशि्चत किए गये है। कार्यालयों में कभी साधारण पत्र ,तत्काल,अर्दध्-सरकारी, तार देना होता है। यही नहीं कार्यालय-ज्ञापन द्दारा सूचना देने, अनौपचारिक टिप्पणी मंत्रालयों में छुट्टी के घोषणा, प्रेस नोट प्रसारित अत: कार्य, महत्व और अवसर की आवश्यकतानुसार विभिन्न रूपों के पत्रों का प्रयोग किया जाता है।
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